दिल्ली 26 मई 2015, ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम द्वारा मोदी सरकार का एक साल और आम जन विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया. गोष्ठी को संबोधित करते हुए पीयूसीएल के एन. डी. पंचोली ने कहा कि मोदी ने चुनाव प्रचार में काले धन लाने और उसके द्वारा आम जनता की खुशहाली दिलाने का जो वादा किया था, सरकार गठन के बाद उसे मात्र चुनावी जुमला बता कर स्प्ष्ट कर दिया कि सरकार जनता से जुङे सवालों पर कितनी गंभीर है. यही नहीं काम का अधिकार-जो कि हमारा संवैधानिक अधिकार है, इस सरकार में श्रम कानूनों में बदलाव कर इसकी धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. उन्होंने इसके खिलाफ संगठित संघर्ष पर बल दिया. समाजवादी समागम के विजय प्रताप ने सरकार की जनविरोधी नीतियों पर विचार करने के साथ ही इस पर भी विचार करने पर बल दिया कि एआईपीएफ के नेतृत्व में जनसंघर्षों को और व्यापक और संगठित कैसे किया जाय. जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रो0 अनिल सूद ने कहा कि मोदी सरकार के सत्ता में आने से पहले पूंजीवाद के विकास के लिए जो रास्ते तैयार किए जा रहे थे वह पिछले दरवाजों या फिर विभिन्न अप्रत्यक्ष माघ्यमों को अपनाकर बनाए जा रहे थे. साथ ही सचेत रूप से एक ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की गई की गई कि देश के विकास के लिए खुले बाजार की अमीरपरस्त नीतियां बनाऐ जाने की जरूरत है. इस पूरे माहौल में मोदी सरकार को मिले बहुमत को ऐसी नीतियों को खुले रूप में लागू करने के जनादेश के रूप में प्रचारित किया गया. जिससे कि काॅरपोरेट को देश की जमीन – खनिज और संसाधनों की लूट की खुली छूट मिल सके. इन्होंने कहा कि इस सरकार में मीडिया सहित विभिन्न माध्यमों से राष्ट्रीयता की एक ऐसी परिभाषा गढ़ी जा रही है जिसके अनुसार देश की पहचान अधिक से अधिक विदेशी निवेशकों के व्यवसाय के लिए अनुकूल बने. मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा ने विश्वास जाहिर किया कि जिस तरह की स्थितियां बन रही हैं वह निश्चित रूप से इस सरकार के लिए बुरे दिनों के रूप में होंगे तो संघर्षरत ताकतों खासकर वामपंथ के लिए अच्छे दिनों के रूप में यह होगा. उन्होंने वामपंथ के बीच एकता की जरूरत को भी रेखांकित किया. भाकपा माले महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि मोदी सरकार द्वारा एक साल में लागू की गई नीतियों ने इस सरकार का चरित्र जनता के बीच साफ किया है. यह सरकार अपने ऐजेण्डे के अनुरूप कॉरपोरेट और सांप्रदायिकता को मिलाकर चल रही है, जिसे अलग भी नहीं किया जा सकता है. 1990 के बाद नई आर्थिक – औद्योगिक नीतियों के लागू होन के बाद यह पहली सरकार है जो पूर्ण बहुमत से आई है और इसीलिए इन नीतियों के समर्थक इस सरकार के गठन को आर्थिक – औद्योगिक नीतियों को खुले और व्यापक रूप में लागू करने के जनादेश के रूप में प्रचारित कर रहे हैं. इसी तरह से यह पहला मौका है जब आर. एस. एस. को भी एक बहुमत सरकार में आने एजेण्डे को लागू करने का मौका मिला है.
दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि इस सरकार ने मुख्यतः चार क्षेत्रों में बदलाव पर जोर दिया है. सरकार ने इसके लिए जमीन – श्रम – वित्त और शिक्षा को चुना है. जहां इस समय किसानों के ऊपर आए कृषि संकट को वह अपने लिए एक अवसर के रूप में देख इसे और बढ़ाकर वह अधिक से अधिक किसानों को खेती से बाहर करने के अपने ऐजेण्डे में काम कर रहा है. श्रम कानूनों, यहां तक कि बाल श्रम को वैद्यता देकर काॅरपोेरेट के लिए सस्ते श्रम की व्यवस्था की जा रही है. नौजवानों के बीच मेक इन इंडिया को रोजगार देने के एक माध्यम के रूप में प्रचारित किया जा रहा है, लेकिन वास्तविक रूप में यह देश के नौजवानों एवं बचपन को बिना किसी बाधा के काॅरपोरेट को सौंपने का ही कुचक्र है. वित्त के मामले में सरकार जन – घन योजना को बहुप्रचारित कर रही है लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र के बैंको में मौजूद असली जन धन तो अडानी जैसे पूंजीपतियों को सौंपा जा रहा है. लेकिन करोड़ों करोड़ जीरो बैलेंस खाते खुलवाकर सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को इन्हीं निष्क्रिय खातों के बोझ तले दबाकर नीजि बैंकों के लिए व्यापार का रास्ता और सुगम कर रही है. शिक्षा के क्षेत्र में भी जो भी बदलाव किए जा रहे हैं, वह मेक इन इंडिया के अनुरूप है. ताकि काॅरपोरेट को सस्ता श्रम मिल सके. भाजपा जिस राष्ट्रवाद की बात करती थी उस राष्ट्रवादी सरकार की आज मुख्य चिन्ता अधिक से अधिक विदेशी निवेश को देश में लाना हो गया है. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार द्वारा इस तरह के जो संरचनात्मक स्तर पर बदलाव किए जा रहे है, इसके प्रति जनता ने निराशा और विक्षोभ जाहिर किया है. यह वही जनता है जो एक वर्ष पहले इस सरकार को बेहतर दिनों की उम्मीद के साथ सत्ता मे लाई थी. आज ये भ्रम और उम्मीदें टूट रही हैं. जनता अपने भोगे हुए यथार्थ से जो जानी है उसी कारण आज सरकार के खिलाफ आक्रोश दिख रहा है. उन्होंने कहा कि मजदूर संगठनों का एक मंच पर आकर इन नीतियों के खिलाफ संघर्ष की घोषणा इसका एक उदाहरण है तो एआईपीएफ को भी इस आक्रोश के खिलाफ जनता के गुस्से को संगठित करने के लिए दिल्ली में मौजूद विभिन्न जनपक्षीय सवालों अपनी पहल बढ़ानी चाहिए.
एनटीयूआई के गौतम मोदी ने मोदी सरकार के एक साल के कार्यकाल में श्रम कानूनों में आए मजदूर विरोधी परिवर्तनों को चिन्हित करते हुए इनके खिलाफ लड़ने की जरूरत पर बल दिया. भाकपा माले की कविता कृष्णन ने कहा कि यह धारणा बनाई जा रही है कि देश को एक परिवार की तरह चलाया जाय. जिसमें परिवार का मुखिया ही सही गलत का फैसला करता है यह आर एस एस का ही माॅडल है. जिसके चलते प्रचारित किया जा रहा है कि इसे करने का अधिकार मोदी को दिया जाय, तो उद्योगों में यह अधिकारउद्योगपति को सौंपा जाय जो मजदूरों के आक्रोश से खुद ही निपटे. शासन – प्रशासन की इसमें कोई भूमिका न हो. उन्होंने कहा कि महिलाओं पर इस बीच लगातार हमले बढ़े हैं, अपने हिंन्दुत्ववादी ऐजेंडे के तहत घर वापसी सहित कई रूपों में उसे निशाना बनाया जा रहा है. देश के विभिन्न भागों- खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह खासतौर पर दिखाई दिया है. उन्होंने कहा कि इस सबके खिलाफ छात्र – नौजवान – महिलाऐं – सांस्कृतिककर्मी समाज के सभी हिस्से सामने आए हैं.
स्ंगोष्ठी की शुरूआत में सांस्कृतिक संस्था संगवारी ने आज के दौर को लेकर अपने गीत प्रस्तुत किए. संगोष्ठी का संचालन किरन शाहीन ने किया. संगोष्ठी में बड़ी संख्या में श्रमिकों, छात्र -नौजवान और बु़िद्धजीवियों ने भागीदारी की. तय किया गया कि जून माह में एआईपीएफ दिल्ली में मोदी सरकार की काॅरपोरेटपरस्त और जनविरोधी नीतियों के खिलाफ अभियाान संगठित करेगा.